आज की शिक्षा व्यवस्था, हम और हमारा समाज
 वो भी दिन थे जब न खाना,न दूध,न फल और न मुक्त में ड्रेस,जूता,मोजा,जर्सी और न ही मुक्त किताबें मिलती थी फिर भी सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए लाइन लगी रहती थी खचाखच बच्चे स्कूलों में भरे रहते थे और उपस्थिति तो कमाल की होती थी इसके साथ ही साथ बच्चे समय से यदि स्कूल नहीं पहुँचते थे तो उन्हें वापस घर लौटा दिया जाता था अब आप समझ ही गए होंगे  कि उन्हें घर बुलाने नहीं जाना पड़ता था । उस समय कोई नवाचार न हर दिन ट्रेनिंग न ही पाठ योजना और न ही शिक्षक डायरी होती थी एक ही लकड़ी के पटले पर दो पीढ़ियां पढ़ लेती थी , कितना मजा आता था सबसे पहले स्कूल की सफाई उसके बाद प्रार्थना और फिर शुरू होती थी पढ़ाई बिना कॉपी,पेंसिल,और पेन के  और शनिवार के दिन बालसभा, सत्र समाप्ति पर होता था प्रैक्टिकल वो भी प्राइमरी स्कूल में लड़के रस्सियां, मिट्टी के अंगूर,केला,आम और न जाने क्या-क्या और लड़कियां पकवान बनाती थी खुशी खुशी अपने घरों से सामान लाकर हलुवा,पकौड़ी,चाय और भी बहुत सी चीजें,अब आप कहेंगें कि उस समय के सरकारी स्कूल के पढ़े बच्चे नौकरी नहीं पाते थे न विदेश में भी नहीं जा पाते थे न  लेकिन ऐसा नहीं है नौकरी भी पाते थे माँ-बाप की सेवा भी करते थे और नौकरी के लिए विदेश भी जाते थे तथा देश के उच्च पदों पर यही सरकारी स्कूल वाले ही प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्री अभी तक बैठ रहे हैं इनमें से कान्वेंट वाले कम ही हैं लगभग की प्रारंभिक शिक्षा प्राइमरी में ही हुए है लेकिन हाँ उस समय अध्यापक को गुरु माना जाता था और उसकी समाज,सरकार और अन्य जगहों पर बहुत इज्जत थी और उसे शक की नजरों से देखा जा रहा है उसे पढ़ाने से ज्यादा और कामों की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है उस समय के अध्यापक जब घर से निकलते थे तो स्कूल और बच्चे नजर आते थे और आज जब अध्यापक घर से निकलता है तो स्कूल बाद में विभाग के काम ज्यादा याद आते हैं कि पहले स्कूल जाऊं या Nprc, Brc या bsa आफिस जाऊं क्योंकि सूचना देना ज्यादा जरूरी है पढ़ाई तो कभी भी हो जाएगी सूचना समय से नहीं गई तो नौकरी पर बन आ जायेगी। आज कुकुरमुत्ते की तरह इंग्लिश मीडियम स्कूलों को भरमार है अब इसमें उनकी गलती नहीं है इनको मान्यता सरकार ने ही दिया है।शिक्षा और शिक्षक को व्यवसायीकरण से जो जोड़ दिया गया है और कुछ हद तक यह अध्यापक भी जिम्मेदार है वह अध्यापन के अतिरिक्त कार्य को बहुत खुशी खुशी करने के लिए तैयार हो जाता है। जब बच्चा अनुत्तीर्ण हो जाता था तो आत्महत्या को गले नहीं लगाता था आज यही अंग्रेजियत वाले बच्चे जब अनुत्तीर्ण हो जाते हैं तो मौत को गले लगा लेते हैं जबकि उस समय ऐसा कोई बच्चा नहीं करता था क्योंकि गुरु उसे हर तरह की विद्या में पारांगत कर देता था उसके बुद्धि को ऐसा माज देता था कि वह इस तरह के आत्मघाती कदम को करने को छोड़ो सोचता भी नहीं था और आज स्थितियां बिल्कुल विपरीत है जरा सा हवा का झोंका आया कि तास के पत्ते की तरह ढह जाता है। आज के समाज मे जहां माता पिता को बोझ समझा जाता है उसे घर से वेघर होना पड़ता है ,छोड़े बड़े का सम्मान नहीं कर रहा है,अपनों के लिए वक्त नहीं है फिर आप ही बताए श्रीमान कि हमारी शिक्षा व्यवस्था और हम सही दिशा में जा रहे हैं या गलत। आपको कैसा लगा अपनी राय कमेंट करें। धन्यवाद

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