आज की शिक्षा व्यवस्था, हम और हमारा समाज ✍ वो भी दिन थे जब न खाना,न दूध,न फल और न मुक्त में ड्रेस,जूता,मोजा,जर्सी और न ही मुक्त किताबें मिलती थी फिर भी सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए लाइन लगी रहती थी खचाखच बच्चे स्कूलों में भरे रहते थे और उपस्थिति तो कमाल की होती थी इसके साथ ही साथ बच्चे समय से यदि स्कूल नहीं पहुँचते थे तो उन्हें वापस घर लौटा दिया जाता था अब आप समझ ही गए होंगे कि उन्हें घर बुलाने नहीं जाना पड़ता था । उस समय कोई नवाचार न हर दिन ट्रेनिंग न ही पाठ योजना और न ही शिक्षक डायरी होती थी एक ही लकड़ी के पटले पर दो पीढ़ियां पढ़ लेती थी , कितना मजा आता था सबसे पहले स्कूल की सफाई उसके बाद प्रार्थना और फिर शुरू होती थी पढ़ाई बिना कॉपी,पेंसिल,और पेन के और शनिवार के दिन बालसभा, सत्र समाप्ति पर होता था प्रैक्टिकल वो भी प्राइमरी स्कूल में लड़के रस्सियां, मिट्टी के अंगूर,केला,आम और न जाने क्या-क्या और लड़कियां पकवान बनाती थी खुशी खुशी अपने घरों से सामान लाकर हलुवा,पकौड़ी,चाय और भी बहुत सी चीजें,अब आप कहेंगें कि उस समय के सरकारी स्कूल के पढ़े बच्चे नौकरी नहीं पाते थे न विदेश म...